Thursday, 23 January 2020

बालिका होने के माने


        *लड़की होंने के माने*

बूंदे रुक रुक गिर रही थी।
टप टप शोर वो कर रही थी।
एक तरफ मेघ से थी डलती,
एक तरफ नैन से झर रही थी।

हाँ मानो बूंदों में कम्पीटिशन हो चला था ,कौन ज्यादा गिरती है मेघ की या नैना के आंख की। पता नही बदली क्यो बूंदे टपका रही थी ,उसे किस बात की खुशी थी या गम ,यह तो नही पता नैना को ,परन्तु उसकी आंख का अनवरत बहना उसे पता था , ऊपर वाला लगातार उस पर चोट पर चोट जो किये जा रहा था। कब तक सहती ,या तो आंख को  पथराना था या फिर बहना। आंख ने चुना बहने को , बचपन से शैलाब के  ऊपर सैलाब आये जा रहे थे। गरीब घर मे पैदा होना शायद हलका तूफान था उसका  जो कम पढ़ाई का चक्रवात उस पर मंडराया। जिस ज़माने में एम ए पास को कोई पढ़ाई नही बोलता उस जमाने मे आठवीं फेल की क्या बिसात दूँ। यह क्या किसी सैलाब से कम था।  सुंदर गठीले शरीर को कम पढ़ाई और गरीब घर की मार सहनी पड़ी , ओर शादी भी अल्प पढ़ाई और गरीब घर मे करनी पड़ी। मगर फिर भी नैना को एक सुकून हुआ ,जब  शैलेश ने ब्याहते ही बोला ,नैनु  मैं तेरे खाबो को पूरा तो नही कर सकता ,तुझे वो सब नहीं दे सकता जो एक लड़की की ख्वाहिश होती है अमीरों की तरह  आभूषण ओर स्टेंडर्ड की। परन्तु मैं तेरे सुख में कोई कमी नहीं आने दूंगा। मेरे प्यार में तुम रत्ती भर कमी नही पाओगी। ओर नैना के नैन भर आये । शैलू तुम्हे गलत पता है कि एक लड़की की ख्वाहिश अलंकार , गाड़ी बंगले की होती है , लड़की की ख्वाहिश होती है पति का प्यार पाने की।  और तुम्हे पाकर वाकई मैं धन्य हो गई ,मेरे सब व्रत उपवासों का फल मिल गया मुझे तुम्हे पाकर के।
ओर समय  कब रक्त तक्त तवे पर पानी की बूंद की तरह उड़ने लगा उसे कुछ पता नही। फिर बालिका हुई लक्ष्मी जैसी काँचनांगी  गोल मटोल ,। नैना के नैन फिर भर आये ... शैलेश बोला पगली है क्या??  आँखे गीली करती है ,अरे लक्ष्मी है लक्ष्मी  मैं तो धन्य हुआ इसे पाकर के मेरे तो सब पुण्य में फल निकल आये और तुम आँसू... धिक ...। ओर नैना खिलखिलाकर हँस दी थी ,बुददू यह आँसूं खुशी के आँसू है ,स्त्री की पूर्णता के। तुम क्या जानो। ओर शैलेश समझ नही पाया था  कि आँसू नैना के नैनो में किस बात के थे।खुशी के या  लड़की हो जाने के।

 परंतु फिर भी जीवन चलता रहा एक दिन वह भी आया जब शैलेश अपने पैरों पर खड़ा होकर   कमाने लगा। अब नीना के टॉप ख्वाब पूरे होने के दिन करीब थे.....।
ओर अब उसका बालिकाओं या लड़की होने के मिथक का हिमशैल लगभग पिघल कर गल चुका था।

*कलम घिसाई*


*बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं*

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