Tuesday, 25 February 2025

शिव एवं विज्ञान भाग 1 शिवलिंग एवम् ऊर्जा

शिवलिंग और ऊर्जा विज्ञान: ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक


शिवलिंग केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि यह ब्रह्मांड की मूलभूत ऊर्जा और वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक ऊर्जा केंद्र (Energy Vortex) है, जो ब्रह्मांड में व्याप्त शक्ति और सृजनात्मक प्रवाह का प्रतीक है। इसे अगर आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए, तो यह कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों से मेल खाता है, जिनमें क्वांटम फिजिक्स, ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Cosmic Energy), स्पिरिचुअल जियोमेट्री (Sacred Geometry), और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड शामिल हैं।



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1. शिवलिंग और ब्रह्मांड की संरचना


1.1 स्थिर आधार (शक्ति) और गतिशील ऊर्जा (शिव)


शिवलिंग का आकार और उसकी संरचना यिन-यांग (शिव-शक्ति ) के संतुलन को दर्शाती है।


शक्ति – यह स्त्री शक्ति (शक्ति तत्व) का प्रतीक है, जो सृजन, पोषण और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करता है। शिवलिंग का आधार (योनिपीठ) इस शक्ति को दर्शाता है।


शिव – यह पुरुष शक्ति (शिव तत्व) का प्रतीक है, जो गतिशीलता, परिवर्तन और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। शिवलिंग का ऊपरी अंडाकार भाग इस शक्ति का द्योतक है।



यह संयोजन हमें क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) के द्वैत-अद्वैत सिद्धांत (Duality Principle) की याद दिलाता है, जहां हर चीज अपने विपरीत के साथ संतुलन में होती है—जैसे कण और तरंग द्वैत (Particle-Wave Duality), सकारात्मक और नकारात्मक चार्ज, पदार्थ और ऊर्जा।



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2. शिवलिंग और ऊर्जा का प्रवाह (Energy Flow)


शिवलिंग को केवल पत्थर मानना इसकी वैज्ञानिक व्याख्या को सीमित कर देगा। प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार, यह एक ऊर्जा संग्राहक और उत्सर्जक (Energy Absorber & Emitter) की तरह कार्य करता है।


2.1 स्पिरिचुअल जियोमेट्री (Sacred Geometry) और शिवलिंग


शिवलिंग का अंडाकार आकार एक टॉरस (Torus) जैसी ऊर्जा संरचना बनाता है, जिसमें ऊर्जा निरंतर प्रवाहित होती है।


यह फ्री एनर्जी डिवाइस (Free Energy Device) के सिद्धांत से मेल खाता है, जहां ब्रह्मांडीय ऊर्जा को संग्रहित किया जाता है और एक निश्चित पैटर्न में वितरित किया जाता है।


वैज्ञानिक दृष्टि से, अंडाकार संरचनाएँ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स (Electromagnetic Fields) को बनाए रखने में सहायक होती हैं।



2.2 क्वांटम फिजिक्स और शिवलिंग


क्वांटम भौतिकी के अनुसार, हर चीज ऊर्जा से बनी है, और ब्रह्मांड में हर वस्तु एक ऊर्जा तरंग (Energy Wave) के रूप में विद्यमान रहती है।


शिवलिंग में ऊर्जा के संचार को अगर वैज्ञानिक रूप से देखें, तो यह क्वांटम वेक्टर फील्ड (Quantum Vector Field) की तरह कार्य करता है, जो गुरुत्वाकर्षण (Gravity), इलेक्ट्रोमैग्नेटिज़्म (Electromagnetism), और ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Cosmic Energy) को प्रभावित करता है।


जिस प्रकार ब्लैक होल (Black Hole) ऊर्जा और पदार्थ को अवशोषित करता है, उसी प्रकार शिवलिंग अपने आसपास की ऊर्जा को एकत्र कर उसे संतुलित करता है।




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3. शिवलिंग और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड (Electromagnetic Field)


3.1 सकारात्मक ऊर्जा केंद्र (Positive Energy Hub)


शिवलिंग को प्राचीन मंदिरों में विशेष स्थानों पर स्थापित किया जाता था, जहां पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) अधिक सक्रिय होता है।


मंदिरों में शिवलिंग के पास जाने से विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा (Electromagnetic Energy) शरीर को प्रभावित करती है, जिससे मस्तिष्क की तरंगें (Brain Waves) शुद्ध होती हैं और मानसिक शांति मिलती है।


यही कारण है कि ध्यान (Meditation) और मंत्रोच्चारण (Chanting) के दौरान शिवलिंग के पास बैठने से अधिक ऊर्जा और सकारात्मकता महसूस होती है।



3.2 जल अर्पण और ऊर्जा संतुलन


शिवलिंग पर निरंतर जल चढ़ाने का एक वैज्ञानिक कारण भी है। जब पानी शिवलिंग के ऊपर से बहता है, तो वह पाइजोइलेक्ट्रिक इफेक्ट (Piezoelectric Effect) उत्पन्न करता है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह नियंत्रित होता है।


यह उसी सिद्धांत पर कार्य करता है जैसे आधुनिक क्रिस्टल एनर्जी जेनरेटर (Crystal Energy Generator), जो ऊर्जा को संग्रहीत और प्रसारित करते हैं।




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4. शिवलिंग और ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Cosmic Energy)


4.1 शिवलिंग और बिग बैंग थ्योरी (Big Bang Theory)


विज्ञान मानता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु (Singularity) से हुई, जो बाद में विस्फोट (Big Bang) के कारण फैल गया।


शिवलिंग का अंडाकार आकार भी उसी "सिंगुलैरिटी" का प्रतीक है, जो अनंत ऊर्जा और सृजन क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है।



4.2 ब्रह्मांडीय चक्र और शिवलिंग  (औम)


ब्रह्मांड में सब कुछ सृजन (Creation), संरक्षण (Sustenance), और संहार (Destruction) के चक्र से गुजरता है।


शिवलिंग इन तीनों अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है—


★ऊर्जा का निर्माण (Creation of Energy)


★ऊर्जा का प्रवाह (Flow of Energy)


★ऊर्जा का पुनः विलय (Dissolution of Energy)


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5. निष्कर्ष: शिवलिंग – ऊर्जा, विज्ञान और चेतना का स्रोत


शिवलिंग केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा, विज्ञान और चेतना का मिलन बिंदु है।


यह क्वांटम फिजिक्स, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड, ब्रह्मांडीय ऊर्जा और बिग बैंग थ्योरी के सिद्धांतों से मेल खाता है।


इसका शिव-शक्ति संतुलन हमें माइक्रोकॉस्म और मैक्रोकॉस्म (छोटे से छोटे कण से पूरे ब्रह्मांड तक) के गहरे संबंध को दर्शाता है।


ध्यान, मंत्रोच्चारण और जल अर्पण से यह एक ऊर्जा केंद्र की तरह कार्य करता है, जो मनुष्य के मस्तिष्क और शरीर को संतुलित करने में सहायक होता है।



"शिवलिंग विज्ञान, ऊर्जा और चेतना का ऐसा स्रोत है, जो ब्रह्मांड के रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए है। यह केवल पूजा का नहीं, बल्कि संपूर्ण अस्तित्व का प्रतीक है—जहां से जीवन की शुरुआत होती है और जहां सब कुछ विलीन हो जाता है।"



❤️कलम घिसाई❤️


Friday, 29 November 2024

कहानी सम्मान की परछाई

कहानी: सम्मान की परछाईं

सूरजप्रकाश  एक तेजतर्रार और ईमानदार अधिकारी थे। सरकारी महकमे में उनका नाम था। उनके निर्णय अंतिम और प्रभावशाली माने जाते थे। हर छोटे-बड़े अफसर, कर्मचारी और आम लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते। बड़े-बड़े मंचों पर उनका सम्मान होता, पत्रकार उनके इंटरव्यू लेने आते, और उनके कार्यक्षेत्र में लोग उन्हें किसी नायक से कम नहीं मानते थे।

प्रारंभिक वर्षों का वैभव

सूरजप्रकाश जब भी दफ्तर आते, लोग खड़े होकर उनका स्वागत करते। “सर, आप जैसा अधिकारी हमने आज तक नहीं देखा,” उनके अधीनस्थ अक्सर कहते। हर समारोह में उन्हें मुख्य अतिथि बनाया जाता। उनकी बेटी की शादी में मंत्री और बड़े व्यापारी तक आए थे। उस वक्त सूरजप्रकाश को यकीन हो गया था कि यह सम्मान उनके व्यक्तित्व और गुणों का फल है।

उनके भाषणों में प्रेरणा थी, निर्णयों में दृढ़ता और व्यक्तित्व में आकर्षण। हर कोई उनके साथ समय बिताना चाहता।

सेवानिवृत्ति की शुरुआत

60 वर्ष की आयु में उनका सेवानिवृत्ति समारोह बड़े धूमधाम से मनाया गया। फूलों की माला, बड़ी-बड़ी भाषणबाजियां, और ढेर सारे तोहफों ने सूरजप्रकाश को गदगद कर दिया। उन्होंने अपने विदाई भाषण में कहा, “यह सम्मान मेरे जीवन का सबसे बड़ा उपहार है। मैं हमेशा आप सबके बीच रहूंगा।”

लेकिन, जैसे ही वे घर लौटे, जीवन का असली अध्याय शुरू हुआ।

यथार्थ का सामना

कुछ महीनों तक तो लोग उन्हें फोन करते रहे, मिलने आते रहे, लेकिन धीरे-धीरे ये मुलाकातें और फोन बंद हो गए। एक दिन उन्होंने किसी कार्यक्रम में जाने के लिए अपने पुराने दफ्तर फोन किया, लेकिन उन्हें सूचित किया गया कि उनके स्थान पर नए अधिकारी को आमंत्रित किया गया है।

सूरजप्रकाश ने इसे संयोग समझा। लेकिन समय के साथ यह संयोग आदत में बदल गया। वे जिन लोगों को कभी 'दोस्त' मानते थे, वे अब उनसे बचने लगे। किसी कार्यक्रम में उनका नाम भूल से भी नहीं लिया जाता। उनके घर पर आने वाले मेहमानों की संख्या घटकर शून्य हो गई।

एक दिन उन्होंने अपने पुराने सचिव को फोन किया, “अरे मोहन, कैसे हो? घर आओ, साथ चाय पिएंगे।”
मोहन ने जवाब दिया, “सर, थोड़ा व्यस्त हूं। बाद में बात करते हैं।”

यह वही मोहन था जो सूरजप्रकाश के हर आदेश पर दौड़ा करता था।

आत्ममंथन का क्षण

सूरजप्रकाश को गहरा झटका लगा। वे अपने ड्राइंग रूम में अकेले बैठे थे। उनकी आंखें दीवार पर लगी उन तस्वीरों पर टिक गईं जिनमें उन्हें सम्मानित करते हुए दिखाया गया था।

“क्या यह सम्मान मेरा था? या इस कुर्सी का?” उन्होंने खुद से पूछा।

वे सोचने लगे कि जो लोग कभी उनके कदमों में झुके रहते थे, वे अब उनकी सुध तक क्यों नहीं ले रहे। क्या वे इतने बदल गए, या वे लोग हमेशा से ऐसे ही थे?

एक नई शुरुआत

सूरजप्रकाश ने अपने अनुभवों को लिखने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने जीवन के अच्छे-बुरे दिनों को कागज पर उतारा। उनकी किताब "सम्मान की परछाईं" प्रकाशित हुई और हिट हो गई।

अब वे सेमिनारों में आमंत्रित किए जाने लगे, लेकिन इस बार उनका सम्मान उनके ज्ञान और अनुभव के लिए था, न कि उनके पद के लिए। वे समझ गए थे कि असली सम्मान वह है जो आपके व्यक्तित्व और योगदान के लिए हो, न कि आपके पद के लिए।

निष्कर्ष

सूरजप्रकाश ने जीवन के इस सत्य को स्वीकार कर लिया:
"सम्मान की परछाईं हमेशा चमकदार होती है, लेकिन यह परछाईं उसी वक्त तक रहती है जब तक आप सत्ता की रोशनी में खड़े हैं। असली रोशनी आपके कर्म हैं, जो आपके साथ हमेशा रहती है।"

इस नई समझ ने उन्हें सच्चा सुख दिया, और वे अब अपने अनुभवों के माध्यम से दूसरों को भी जीवन के इस गूढ़ सत्य को समझाने का प्रयास करते हैं।


*कलम घिसाई*

स्काउट का जीवन

स्काउट का जीवन

धूप में तपती राहों पे चलना,
आंधी-तूफानों में अडिग रहना।
धरती से लेकर अम्बर तक,
स्काउट का यही  है।कहना।

त्याग और सेवा पथ अपनाना,
सपनों को जग के लिए सजाना।
हर विपदा को गले लगाकर,
समर्पण से जीवन को पाना।

संघर्ष से कुछ घबराना नहीं,
हर कठिनाई  हंस कर सहना।
साहस, सेवा, समर्पण का,
जीवन मंत्र सदा रहना।

दूसरों के आंसू पोंछे,
 दुख में साथी बन जाए।
स्वार्थ से ऊपर उठकर,
अपनी खुशियां  भी वार जाए।

देश-भक्ति, मानव-सेवा,
इन मूल्यों का वह प्रतीक है।
स्काउट तो है समाज का दीपक,
हर दिशा में जो प्रकाशित है।

हर दिन सीखता, बढ़ता जाता,
जीवन को नित नई राह दिखाता।
सच्चाई, त्याग, समर्पण का पथ,
स्काउट का हृदय वही अपनाता।


कलम घिसाई


स्काउट पर मुक्तक

देशभक्ति का जोश दिलों में जगाता है,
त्याग और सेवा का संदेश सुनाता है।
निश्छल हृदय से सदा निष्ठा  को साथ ले,
स्काउट हर बाधा में दीप जलाता है।


साहस की मशाल से पथ को दिखाता है,
जीवन में अनुशासन का पाठ पढ़ाता है।
संकल्प और साधना का  बताता जो मर्म ,
स्काउट सदा सच्चाई का मान बढ़ाता है।


जंगल हो या पर्वत, हर राह अपनाता है,
कठिनाइयों में भी मुस्कान लुटाता है।
सेवा, करुणा, सादगी में जो सिमटा, 
स्काउट हर दिल को प्रेरित करता है।



Saturday, 23 November 2024

अनकही स्याही

कहानी: "अनकही स्याही"

रात के अंधेरे में दीपक की मद्धम रोशनी के सामने बैठा एक व्यक्ति अपनी डायरी के पन्नों पर शब्दों का मेला सजाए बैठा था। यह था विवेक, एक ऐसा साहित्यकार जो शब्दों का जादूगर तो था, पर उसकी जादूगरी का असर किसी पर नहीं होता था। समाज ने उसे अनदेखा कर दिया था, और अब वह खुद को असफल मान चुका था।

विवेक के कमरे में किताबों के ढेर थे। दीवारों पर महान साहित्यकारों के चित्र टंगे थे—मिर्ज़ा गालिब, प्रेमचंद, टैगोर। उनका सान्निध्य ही विवेक का सहारा था। वह कहता, "शब्द मेरी आत्मा हैं। इन्हें छोड़ना मेरे लिए मृत्यु समान है।"
लेकिन इन शब्दों का न कोई प्रकाशनकर्ता था और न कोई पाठक। उसने अपने लेख अनेक जगह भेजे, पर हर बार वही उत्तर आता, "आपकी शैली हमारी पाठक संख्या के अनुरूप नहीं है।"

एक दिन गाँव का अध्यापक, गोविंद, जो विवेक की लेखनी का आदान-प्रदान पढ़ता था, उसके पास आया। उसने कहा, "विवेक भाई, आपकी कहानियों में जो गहराई है, वो मैंने कहीं नहीं देखी। आपने मेरी ज़िंदगी बदली है।"
गोविंद ने सुझाव दिया कि विवेक अपनी रचनाओं को ऑनलाइन साझा करे। विवेक ने झिझकते हुए सोशल मीडिया का सहारा लिया।

धीरे-धीरे, उसकी कविताएँ और कहानियाँ पढ़ने वाले लोग मिलने लगे। लेकिन समस्या यह थी कि उसके लेख पढ़े जाते, परंतु उन्हें लाइक, शेयर और कमेंट नहीं मिलते। वह बार-बार अपना अकाउंट खोलता और खाली नोटिफिकेशन देखकर उदास हो जाता।

"क्या मेरे शब्द इतने कमजोर हैं कि लोग इन्हें पढ़कर भी अनदेखा कर देते हैं?" वह खुद से सवाल करता।

एक रात, जब उसके कई प्रयास विफल हो चुके थे, उसने अपनी डायरी में लिखा:
"मैं असफल हूँ। शायद मेरे शब्द किसी के लिए नहीं हैं। लेकिन फिर भी, मैं लिखना नहीं छोड़ सकता। यह मेरी नियति है।"

विवेक की उम्र बढ़ती गई, और वह दुनिया से और भी अधिक अलग-थलग हो गया। उसकी सेहत बिगड़ने लगी, लेकिन वह लिखना नहीं छोड़ता था। उसके कमरे की मेज पर डायरी का हर पन्ना भरा हुआ था।
एक दिन, जब वह अपनी मेज पर लिखते हुए सो गया, वह कभी नहीं उठा। उसके शब्द वहीं अधूरे रह गए।


उसके शोक सभा में गाँव के कुछ लोग और उसके कुछ पुराने विद्यार्थी आए। उनमें से एक था गोविंद, जिसने कभी विवेक की लेखनी को सराहा था। गोविंद ने उसकी डायरी और पुरानी रचनाएँ अपने पास रख लीं।

गोविंद ने तय किया कि वह विवेक के लेखन को दुनिया तक पहुँचाएगा। उसने विवेक की कहानियों और कविताओं को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया और सोशल मीडिया पर साझा करना शुरू किया। धीरे-धीरे, विवेक की रचनाएँ वायरल होने लगीं। लोग उसकी गहराई को पहचानने लगे।


कुछ महीनों बाद, विवेक की पुस्तक ने साहित्य जगत में अपनी जगह बनाई। उसे मरणोपरांत एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जिस व्यक्ति को उसकी ज़िंदगी में कभी पहचान नहीं मिली, उसे मरने के बाद वही समाज सराहने लगा।


विवेक भले ही इस दुनिया में न था, लेकिन उसके शब्द अब अमर हो चुके थे। गोविंद ने मंच पर विवेक के सम्मान में कहा:
"उनकी स्याही कभी अनकही नहीं थी, बस हम सुनने को तैयार नहीं थे। आज उनकी रचनाएँ हमें सिखा रही हैं कि शब्द अमर होते हैं।"

"स्याही चाहे कितनी ही अनदेखी क्यों न हो, उसका असर समय के साथ ज़रूर दिखता है।"

*कलम घिसाई*

Tuesday, 29 December 2020

तेरी चाहत में

 212 122  222  212


दिल भटक भटक कर बंजारा हो गया। 

(तेरी चाहत में।)

दिल तड़प तडफ़ कर आवारा हो गया।
दिल भटक भटक कर बंजारा हो गया।
 
तुम तो हाथ मेरे आओगी भी  नही ।
सोच कर यही मधु  बेचारा हो गया।

बात मेरि अब यह सुनता भी  है  कहाँ 
 जब से दिल मिरा यह  तुम्हारा हो गया।

मेहमान जब से तुम बनकर आ गई।
रोशनी सा दिल मे उजियारा हो गया।

अब तो बस लगे यह दुनियाँ ही दोगली।
 ख़ाक साजमाना यह सारा हो गया।
*कलम घिसाई*





Saturday, 22 August 2020

गणेश चतुर्थी पर 8 अवतार वर्णन

 


    भगवान श्री गणेश के आठ अवतारों का  संक्षिप्त  वर्णन (गणेश चतुर्थी विशेष)

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आज चतुर्थी भाद्र मास की , शुक्ल पक्ष की यह बात है।

श्री गणेश का जन्म दिवस है,जो रिद्धि सिद्दी अहिवात है।

मात पार्वती ने  गणेश को ,तनिक मैल से गात दिया।

और जन्मते ही रखवाली का ,अभिन्न काम अंजाम दिया।

पहरा देते समय वहां पर ,महादेव जब आ ही गये।

आप कौन और किधर से आये, लगते हो मुझे नए नये।

मेरे घर मे मुझको टोके, अचरज खा गए त्रिपुरारी।

बोले हट  छोड़ मार्ग तू ,कौन है तू जो करे रखवारी।

बात बढ़ी ओर महादेव ने ,हल्का एक प्रहार किया।

बालक का जो सर था उसको,धड़ से शीघ्र उतार दिया।

पार्वती को पता चला तो,आग बबूला हो बैठी।

महादेव से मूँह को मोड़ा, और फिरे ऐंठी ऐंठी।

चला पता जब देवलोक में ,दौड़े दौड़े सब आये।

जैसे तैसे ऐसे वेसे ,सब करे जतन और समझाये। 

आखिर मैं यही

हुआ तय फिर , लाल मेरा फिर ज़िंदा हो।

सबसे ज्यादा हो ताकत भी,पूजित सबसे आइंदा हो।

सुनकर महादेव ने श्री विष्णु को,काम यह  तत्काल दिया।

जाकर लाओ कोई भी सिर, विष्णु ने फौरन मान लिया।

सबसे पहले मिला विष्णु को , एक गजबालक नन्हा सा।

उसी से मांगकर ले आये , विष्णु वो सिर  नन्हा सा।

किया व्यवस्तिथ गज के सिर को,और प्राण संचार किये।

इस प्रकार ही श्री गणेश ,गजवदन अवतार हुए।

प्रथम देव का प्रथम रूप ,फिर नाम गजानन कहलाया।

हुए अष्ठ अवतार जो उनके ,प्रथम इसे ही पुजवाया।

           1★गजानन★


श्रीगणेश का यह रूप सांख्यब्रह्म का धारक है। 

सिर पर गज का आनन है उनका वाहन मूषक है।

कहते है शुक्र शिष्य लोमासुर ने  ,वरदान गज़ब का चाहा था।

निर्भय होकर सब लोक में घुमू, यह  शंकर से पाया था।

मिला उसे तथास्तु तो ,आगे उसकी चढ़ आई।

करो रिक्त कैलाश को शंकर, इतनी हिम्मत बड़ आई।

तब श्री गणेश ने उसको, मृत्युमुख में पहुंचाया था।

कहते है इस कारण ही , यह गज का आनन पाया था।


     2 *★विघ्ग्रराज★  *

चलो बताऊं अब गणेश के, कौन कौन अवतार हुए।

विष्णु ब्रह्म के वाचक*विघ्ग्रराज* ,

शेषवाहन पर सवार हुए।

जब ममतासुर ने कर प्रसन्न ,इनसे ही वरदान लिया।

ले आसरा इसी बात का,सकल ब्रम्हांड परेशान किया।

करी देवताओं ने विनती ,फिर विघ्गरराज से जाकर।

ममतासुर को मार गिराया ,इनने गुस्से में आकर।


       3★धूम्रवर्ण★


अजेय अमर अहंतासुर से सम्पूर्ण लोक में हाहाकार मचा।

श्री गणेश ने धूम्रवर्ण बन ,तब शिवब्रह्म का स्वरूप रचा।

नारद ने समझाया बहुविधि पर अहंतासुर

था अभिमानी।

अपने अहम वरदान के कारण ,उसने बात नही मानी।

तब श्री गणेश ने उससे मिलकर भीषण सा संग्राम किया।

ज्ञान हुआ फिर अभिमानी को ,शरणागत हो प्रणाम किया।


         4★ विकट स्वरूप*


श्री गणेश का विकट स्वरूप सौरब्रह्म का धारक है।

जिसमें  वाहन इनका मयूर ,और कामासुर का तारक है।

कामासुर ने  कीन्ह तपस्या ,अजय अमर वरदान लिया।

इसी बात के चलते चलते ,पूरा त्रिलोक परेशान किया।

तब गणेश से देवलोक ने ,अनुनय और गुहार करी।

श्री गणेश ने विघ्नहरण को ,उनकी आर्त पुकार सुनी।

करी चढ़ाई कामासुर पर , जबरदस्त हुँकार किया।

इसे देख कर कामासुर ने ,जमकर गदा प्रहार किया।

मगर गणेश ने पटक गदा को ,पृथ्वी लोक पर डार दिया।

मर तो सकता नही दुष्ट था,सो उसको लाचार किया।

शरणागत हो कामासुर ने ,श्री गणेश का ध्यान किया।

*विकट रूप* श्री गणपति का यह,सारे जग ने मान दिया।


         5★ लम्बोदर★


लम्बोदर अवतार प्रभु का,शक्ति ब्रह्म का धारक है।

यह सत्स्वरूप है मूषकपति का,क्रोधासुर उद्धारक है।

क्रोधासुर ने सूर्यदेव को ,भक्ति से खुश कर डाला।

अजर अमर का वर लेकर ,ब्रह्मांड तंग फिर कर डाला।

लम्बोदर ने क्रोधासुर से ,फिर भीषण संग्राम किया।

कर शरणागत इसको भी ,रहने को अपना धाम दिया।


        6★महोदर ★

ज्ञान ब्रह्म का यह स्वरूप भी, मोहासुर के कारण है।

जिसका सूरज की भक्ति से , अजर अमरतव का धारण है।

सकल लोक को त्रस्त किया जब श्री विष्णु ने समझाया।

नाम सुना जब ★महोदर★ का तो ,मोहासुर भी थर्राया।

गया शरण फिर मोहासुर , मूषक वाहन धारी के।

नाम महा उदर भी जुड़ गया, श्री गणेश जगतारी के।

          7★एकदन्त★

श्री गणेश का यह स्वरूप ,देहि ब्रह्म का धारक है।

च्यवन सुत और शुक्र शिष्य, मदासुर  का मद मारक है।

जिसने माँ भगवती के वर से , त्रिपुरारी शिव को हरा दिया।

अपने छल बल दल से जिसने,सकल लोक को डरा दिया।

बंधा देखकर शम्भू पिता को,शम्भू सुत ने संज्ञान लिया।

मन्द बुध्दि मय मदासुर को , अपना पूरा ज्ञान दिया।

छोड़ शम्भु को  जी जीवन को ,भरपूर उसे समझाया।

पर मद में आकर उसने प्रभु पर, अपना धनु धरना चाहा।

पर बाण चढ़ाना मुश्किल था,श्री गणेश की माया से।

आखिर में हो परेशान वो ,हार गया शिव जाया से।

अभय वाला वर देकर फिर, पाताल लोक में पहुंचाया।

देहि स्वरूप के कारण प्रभु का,नाम एकदन्त कहलाया।

         8★*वक्रतुण्ड*★


वक्रतुंड अवतार प्रभु का,ब्रह्म रूप का धारक है।

ब्रह्मरूप से सकल शरीरों में ,आने जाने में व्यापक है।

वक्रतुंड ने वाहन देखो,मूषक नही शेर  लिया।

मत्सरासुर को इसमें गणेश ने ,घायल करके ढेर किया।

मर तो सकता नही कभी था,अजर अमर का वर जो था।

शिव शंकर को पाशब्द्द कर ,बना दैत्य राज मत्ससुर था।

इंद्र प्रमाद की पैदाइश थी ,इस मतसासुर दानव की।

त्राय त्राय जिससे कर बैठी ,देवलोक संग धरा मानव की।

तब श्री गणेश के दो ही गणो ने ,अहम असुर का चूर किया।

पाताल लोक में भेज दैत्य को ,सकल ब्रह्म से दूर किया।


क्रम तो बतला नहीं पाऊंगा ,इस पर बहुत विचार किया।

परन्तु यह आठ रूप है जिनका मैंने विस्तार किया।


धूम्रवर्ण  ,विघ्ग्रराज  ,विकट,लम्बोदर  ,

गजानन,महोदर,एकदन्त ,वक्रतुण्ड


 


        *कलम घिसाई*









Saturday, 7 March 2020

तू परिंदा है ...

तू परिंदा है मर्ज़ी जहां तक तू उड़।
तेरी मर्ज़ी पड़े उसजहाँ तक तू उड़।
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तुझको उड़ने से कोई नही रोकता।
तेरा कमजोर मन ही तुझे टोकता।
होंसला अपने अंदर जगा तो सही,
पंख तेरे है उनको फैला के तू उड़।
तू परिंदा है .............।
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भूल करना नही सोचने में तू यह।
देगा कोई सहारा फिर उड़ेगा  तू यह।
छोड़ दे नीड पल दो ही पल के लिये।
एक डाली से उड़ कर दूसरी तक तू उड़।
तू परिंदा है .........।
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याद रखना मिलेगा शज़र भी नहीं।
बैठ जिस पर तु जाए जगह भी नही।
जितनी दम है भरोसा तू उस पर ही कर।
बिन सहारा लिये दूर ही तक तू उड़।
तू परिंदा है मर्ज़ी जहाँ तक तू उड़।
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कौन उड़ने का हूनर सिखाये तुझे।
पंख कुदरत ने खुद ही दिए है तुझे।
सीख खुद की उड़ाने सहारे बिना,
अपने दम दूर की हद ही तक तू उड़।
तू परिंदा है मर्ज़ी जहां तक तू उड़।

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चार दिन चौन्च भर दाना देगी तुझे।
बाद माँ भी बिगाना करेगी तुझे।
पेट भरना अगर है ज़रूरी तेरा।
मेहनत करने की जद वहाँ तक तू उड़।
तू परिंदा ............।
***************************
देख डरना नही तू जो भूखा रहे।
काम करना हो जो मर्ज़ी दुनियाँ कहे।
एक दिन कामयाबी मिलेगी तुझे,
राम दिल मे बसा बस यहां तक तू उड़।
तू परिंदा है............।

**कलम घिसाई*